इमोसनल अत्याचार और हमारे फिल्मकार
>> Friday, January 9, 2009
इन दिनों अनुराग कश्यप की फ़िल्म – देव-डी का गीत – इमोसनल अत्याचार मुझे काफ़ी पसंद आ रहा है…इसके ब्रास बैंड वाले वर्ज़न को सुन कर सर्दियों में होनेवाली उत्तर भारतीय शादियों - बरातों की यादें बरबस ताज़ा हो जाती है…और आजकल के बाकी धूम धड़ाकेदार गीतों से हट कर इसके बोल कुछ ऐसे मजेदार हैं की ये गीत पिछले हफ्ते से मेरे आई- ट्यून्स पर सर्वाधिक प्ले किए गीतों की लिस्ट में बना हुआ है…
आज यूँ ही मस्ती में ये गीत सुनते हुए जब मैंने इसके बोलों पर ध्यान दिया तो मुझे इस गीत में इसके निर्देशक अनुराग कश्यप का दर्द और उन पर हुए इमोशनल अत्याचार की झलक भी नज़र आई. अब मेरा ये सोचना किस हद तक सही है ये या तो अनुराग जी जानते हैं या इस गीत के गीतकार –
गीत देखिये और जो मैंने नोटिस किया उस पर गौर फरमाइए…(और बताइए आप क्या सोचते हैं?)
गीत के शुरुआत की लाईनें हैं - एक दो तीन चार…..छै…
मैंने सोचा इसमें से पाँच कहाँ गया…और याद आया बेचारे अनुराग जी की फ़िल्म पाँच ना जाने कब से डब्बा बंद है..और ना जाने ये कभी किसी थियेटर का मुंह देख भी पाएगी या नहीं…सो शायद इसलिए गीत की शुरुआत की गिनती में से भी पाँच का ज़िक्र उन्होंने निकाल दिया है…
फिर गीत में आगे एक पंक्ति और आती है – ये दिल पिघला के साज़ बना लूँ, धड़कन को आवाज़ बना लूँ, स्मोकिंग स्मोकिंग निकले रे धुंआ…
हम सभी को याद है की अनुराग की पिछली फ़िल्म नो स्मोकिंग थी और उसका क्या हश्र हुआ था…शायद इसीलिए वे इस लाइन के आगे कहते हैं
सपने देखे जन्नत के पर मिटटी में मिल जाएँ..
अपने पर हुए इस इमोशनल अत्याचार को बैंड बाजे के साथ गाने का अंदाज़ निराला अवश्य है…पर ये कोई नई बात नहीं कि ख़ुद की सफल/असफल फिल्मों को याद करके गाने बनाये जाएँ…
जब बात गानों में नए प्रयोग करने की हो, तो शोमैन राज कपूर हमेशा बाज़ी मार ले जाते हैं (इस पर एक विस्तृत पोस्ट करीब करीब तैयार है और जल्द ही इस चिट्ठे पर पोस्ट करूँगा) , जहाँ अनुराग ने इस एमोसनल अत्याचार को बैंड बाजे के साथ प्रस्तुत किया है, राज साहब ने अपनी दुःख भरी दास्ताँ पेश की थी एक दर्द भरे नगमें में अपनी फ़िल्म आवारा में.
गीत था – हम तुझसे मोहब्बत करके सनम, रोते भी रहे हँसते भी रहे…
याद कीजिये गीत की ये पंक्तियाँ –
ये दिल जो जला एक आग लगी…आंसू जो बहे बरसात हुयी…
बादल की तरह आवारा थे हम…रोते भी रहे हँसते भी रहे…
यदि आपको याद हो तो राज साहब कि बतौर निर्माता-निर्देशक पहली फ़िल्म थी – आग जो बड़ी बुरी तरह फ्लॉप हुयी थी, आग की असफलता से उनके आंसू बहे या नहीं ये तो पता नहीं मगर दूसरी फ़िल्म बरसात की अपार सफलता ने राज साहब को सातवें आसमान पर ला बिठाया…गौरतलब बात ये है कि बरसात की पटकथा और संवाद लिखे थे रामानंद सागर जी ने . आवारा राज साहब की तीसरी फ़िल्म थी जो बरसात से भी कहीं बड़ी हिट साबित हुयी…फिल्मकार मित्र राज के इस फिल्मी सफर को शैलेन्द्र जी की कलम ने इस गीत में बयान कर दिया.
(वैसे आवारा मेरी सबसे पसंदीदा फिल्मों में से एक है…कभी इस पर विस्तार से चर्चा करने का मन है इस चिट्ठे पर)
7 comments:
बहुत खूब आलोक जी, कहां छिपे बैठे थे आजतक!
Agyaat Mahoday...Hum THe Toh Yahin Kahin..aapki Nazrein Inayat aaj Huyi..Comment ke liye dhanyawaad
सही बात पकड़ी आपने...क्या यह गीत लिखा भी अनुराग ने है? जानकारी के लिए पूछ रहा हूं...
अजी मान गए आपकी पारखी नजर और लेखन को भी..
अनुराग कश्यप जी तो हमारे भी हिट लिस्ट में हैं, आखिर डोगा पर सिनेमा बनाने का जो सोच रहे हैं.. :)
अत्याचार वाला गाना तो सबके होंटो पर चढ़ गया है..
good points to pick up alok ji.. i too wondered k paanch kahan gaya, but now i know, i almost forgot about the movie Paanch :D
I cant type in hindi, kaise kate hain?
Trippy ganey hain Dev D k bohat, achha laga sun kar. Ek gana hai Dev Anand Sahab ka,
Main zidagi ka saath nibhata chala gaya...
Us gaaney k baad agar shayad Dev D k gaaney hi aisein jo kuchh 80% kareeb aayein hain hindi film industry k golden years ke . :)
P.S - Ye Yayavar kon hain?
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